This time we are back with Amazing The Bhagavad Gita Quotes in Hindi. Bhagavad Gita is an epic scripture that has the answers to all our problems. Here you will be presented with transcendental knowledge of the most profound spiritual nature as revealed in the Bhagavad- Gita.
Here I bring you the Best ever Bhagavad Gita Quotes In Hindi. So just check it out and find out the Best Quotes for yourself.
Let's get started.
Bhagavad Gita Saar In Hindi
आप ख़ाली हाथ आये थे और ख़ाली हाथ ही जाओगे,
आपके कर्म ही आपके जीवन की पूँजी है,
मोह माया को त्याग कर अच्छे कर्मों से जीवन उच्च बनाया जा सकता है।
आत्मा को शस्त्र नहीं काट सकते, अग्नि नहीं जला सकती ,
जल नहीं गाला सकता , वायु नहीं सूखा सकती।
जो आत्मा को मारने वाला समझता है,
और जो इसको मरा समझता है वे दोनों ही नहीं जानते हैं,
क्योंकि यह आत्मा न मरता है और न मारा जाता है।
किसी दुसरे के जीवन के साथ पूर्ण रूप से जीने से बेहतर है,
की हम अपने स्वयं के भाग्य के अनुसार अपूर्ण जियें।
हे अर्जुन ! जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है,
मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ कर देता हूँ।
जो हुआ वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है वह अच्छा हो रहा है, जो होगा वो भी अच्छा ही होगा।
केवल मन ही किसी का मित्र और शत्रु होता है ।
क्रोध से भ्रम पैदा होता है. भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है,
जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है,
जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।
नरक के तीन द्वार होते है, वासना, क्रोध और लालच।
मैं समस्त प्राणियों के ह्रदय में विद्यमान हूं।
आनंद अपने अंदर ही निवास करता है परंतु मनुष्य उसे स्त्री में,
घर में या बाहर के सुखों में खोज रहा है।
तुम खुद अपने मित्र हो और खुद ही अपने शत्रु।
आत्मा किसी काल में भी न जन्मता है और न मरता है,
और न यह एक बार होकर फिर अभावरूप होने वाला है।
आत्मा अजन्मा, नित्य, शाश्वत और पुरातन है,
शरीर के नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता।
,एक उपहार तभी अलसी और पवित्र है,
जब वह हृदय से किसी सही व्यक्ति को सही समय,
और सही जगह पर दिया जाये और जब उपहार देने,
वाला व्यक्ति दिल में उस उपहार के बदले कुछ पाने की उम्मीद ना रखता हो।
हे अर्जुन, मैं धरती की मधुर सुगंध हूँ, मैं अग्नि की ऊष्मा हूँ,
सभी जीवित प्राणियों का जीवन और सन्यासियों का आत्मसंयम भी मैं ही हूँ।
तुम्हारा क्या गया जो तुम रोते हो, तुम क्या लाए थे जो तुमने खो दिया,
तुमने क्या पैदा किया था जो नष्ट हो गया, तुमने जो लिया यहीं से लिया,
जो दिया यहीं पर दिया जो आज तुम्हारा है, कल किसी और का होगा।
क्योंकि परिवर्तन ही संसार का नियम है।
वह जो सभी इच्छाएं त्याग देता है और ‘मैं’ और ‘मेरा’ की लालसा,
और भावना से मुक्त हो जाता है उसे शांति प्राप्त होती है ।
मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं के माध्यम से भगवान,
की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है, और लगातार तुम्हे बस,
एक साधन की तरह प्रयोग कर के सभी कार्य कर रही है।
मनुष्य को परिणाम की चिंता किए बिना, लोभ- लालच बिना एवं निस्वार्थ,
और निष्पक्ष होकर अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए।
जन्म लेने वाले के लिए मृत्यु उतनी ही निश्चित है,
जितना कि मृत होने वाले के लिए जन्म लेना।
इसलिए जो अपरिहार्य है उस पर शोक मत करो।
परिवर्तन संसार का नियम है समय के साथ संसार में,
हर चीज़ परिवर्तन के नियम का पालन करती है।
जो अपने मन को नियंत्रित नहीं करते उनका मन ही उनका सबसे बड़ा शत्रु है।
जैसे मनुष्य जीर्ण वस्त्रों को त्यागकर दूसरे नये वस्त्रों को धारण करता है,
वैसे ही देही जीवात्मा पुराने शरीरों को त्याग कर दूसरे नए शरीरों को प्राप्त होता है।
ऐसा कोई नहीं, जिसने भी इस संसार में अच्छा कर्म किया हो,
और उसका बुरा अंत हुआ है चाहे इस काल(दुनिया) में हो या आने वाले काल में।
हे अर्जुन! सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता ना इस लोक में है ना ही कहीं और।
Bhagavad Gita Quotes On Humanity
जीवन न तो भविष्य में है, न अतीत में है, जीवन तो बस इस पल में है।
तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नहीं है,
और फिर भी ज्ञान की बात करते हो, बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित,
और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं।
क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है,
जब बुद्धि व्यग्र होती है तब तर्क नष्ट हो जाता है।
जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।
श्रीमद्भगवद्गीता के अनुसार नरक के 3 द्वार हैं- क्रोध, वासना और लालच।
ध्यान से मन एक दीपक की ज्योति समान अटूट हो जाता है,
अपने आप को मज़बूत करने के लिए अपने आप को जानना अति आवश्यक है।
कर्म मुझे बांध नहीं सकता क्यों की मेरी कर्म के फल में आसक्ति नहीं है।
जन्मने वाले की मृत्यु निश्चित है और मरने वाले का जन्म निश्चित है,
इसलिए जो अटल है अपरिहार्य है उसके विषय में तुमको शोक नहीं करना चाहिये।
जो भी मनुष्य अपने जीवन अध्यात्मिक ज्ञान के चरणों के लिए दृढ़ संकल्पों में स्थिर है,
वह सामान रूप से संकटों के आक्रमण को सहन कर सकते हैं,
और निश्चित रूप से यह व्यक्ति खुशियाँ और मुक्ति पाने का पात्र है।
हे अर्जुन! मन की गतिविधियों, होश, श्वास, और भावनाओं,
के माध्यम से भगवान की शक्ति सदा तुम्हारे साथ है।
कोई भी व्यक्ति जो चाहे बन सकता है,
यदि वह व्यक्ति एक विश्वास के साथ इच्छित वस्तु पर लगातार चिंतन करें।
जब वे अपने कार्य में आनंद खोज लेते हैं तब वे पूर्णता प्राप्त करते हैं ।
अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।
मनुष्य को जीवन की चुनौतियों से भागना नहीं चाहिए,
और न ही भाग्य और ईश्वर की इच्छा जैसे बहानों का प्रयोग करना चाहिए।
मनुष्य विश्वास से ही बनता है आप जैसा विश्वास रखते है वैसे ही बन जाते है सुख,
ख़ुशी और भाग्य का निर्माण मनुष्य के आंतरिक विश्वास से ही होता है।
मनुष्य अपनी वासना के अनुसार ही अगला जन्म पाता है।
सुखदुख, लाभहानि और जयपराजय को समान करके,
युद्ध के लिये तैयार हो जाओ इस प्रकार तुमको पाप नहीं होगा।
भगवान या परमात्मा की शांति उनके साथ होती है,
जिसके मन और आत्मा में एकता/सामंजस्य हो,
जो इच्छा और क्रोध से मुक्त हो,
जो अपने स्वयं/खुद के आत्मा को सही मायने में जानते हों।
हे अर्जुन! प्रबुद्ध व्यक्ति के लिए, गंदगी का ढेर, पत्थर, और सोना सभी समान हैं।
फल की अभिलाषा छोड़कर कर्म करने वाला पुरुष ही अपने जीवन को सफल बनाता है।
मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो फिर सब तुम्हारा है तुम सबके हो ।
आत्म-ज्ञान की तलवार से काटकर अपने ह्रदय से अज्ञान,
के संदेह को अलग कर दो अनुशाषित रहो उठो।
मनुष्य को अपने कर्मों के संभावित परिणामों से प्राप्त होने वाली विजय या पराजय,
लाभ या हानि, प्रसन्नता या दुःख इत्यादि के बारे में सोच कर चिंता से ग्रसित नहीं होना चाहिए।
कर्म करो फल की इच्छा मत करो अपनी ख़ुशी को केवल अस्थायी वस्तुओं पर निर्धारित,
ना करे सच्चा सुख अच्छे कर्मों के माध्यम से जीवन को सुखी बना देता है।
यह संसार हर छड़ बदल रहा है और बदलने वाली वस्तु असत्य होती है।
Quotes From Bhagavad Gita On Success
कर्म करने मात्र में तुम्हारा अधिकार है, फल में कभी नहीं,
तुम कर्मफल के हेतु वाले मत होना और अकर्म में भी तुम्हारी आसक्ति न हो।
अपने कर्म पर अपना दिल लगायें, ना की उसके फल पर।
हे अर्जुन! मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है,
लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।
हे अर्जुन !
क्रोध से भ्रम पैदा होता है, भ्रम से बुद्धि व्यग्र होती है,
जब बुद्धि व्यग्र होती है, तब तर्क नष्ट हो जाता है,
जब तर्क नष्ट होता है तब व्यक्ति का पतन हो जाता है।
इतिहास कहता है कि कल सुख था, विज्ञान कहता है कि कल सुख होगा,
लेकिन धर्म कहता है, कि अगर मन सच्चा और दिल अच्छा हो तो हर रोज सुख होगा ।
मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है.जैसा वो विश्वास करता है वैसा वो बन जाता है.
मानव कल्याण ही भगवत गीता का प्रमुख उद्देश्य है,
इसलिए मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करते,
समय मानव कल्याण को प्राथमिकता देना चाहिए।
ज़िंदगी एक यात्रा है ना कि मंज़िल ज़िंदगी में ख़ुशी,
आपको अच्छी यात्रा करने से मिलेगी ना कि मंज़िल प्राप्त,
करने से इसलिए ज़िंदादिली के साथ जिये।
बाहर का त्याग वास्तव में त्याग नहीं है भीतर का त्याग ही त्याग है,
हमारी कामना ममता आसक्ति ही बढ़ने वाले है संसार नहीं।
बुद्धियोग युक्त मनीषी लोग कर्मजन्य फलों को त्यागकर जन्मरूप ,
बन्धन से मुक्त हुये अनामय अर्थात निर्दोष पद को प्राप्त होते हैं।
सभी काम धयान से करो, करुणा द्वारा निर्देशित किये हुए।
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मेरा तेरा, छोटा बड़ा अपना पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है और तुम सबके हो।
जीवन ना तो भविष्य में है और ना ही अतीत में है,
जीवन तो केवल इस पल में है अर्थात इस पल का अनुभव ही जीवन है।
इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है.
मनुष्य का मन इन्द्रियों के चक्रव्यूह के कारण भ्रमित रहता है,
जो वासना, लालच, आलस्य जैसी बुरी आदतों से ग्रसित हो जाता है,
इसलिए मनुष्य का अपने मन एवं आत्मा पर पूर्ण नियंत्रण होना चाहिए।
मनुष्य अपने विचारों से ऊँचाइयाँ भी छू सकता है और ख़ुद को गिरा भी सकता है,
क्योंकि हर व्यक्ति ख़ुद का मित्र भी होता है और शत्रु भी।
अहम् भाव ही मनुष्य में भिन्नता करने वाला है,
अहम् भाव न रहने से परमात्मा के साथ भिन्नता का कोई कारण ही नहीं है।
कर्मों के न करने से मनुष्य नैर्ष्कम्य को प्राप्त नहीं होता,
और न कर्मों के संन्यास से ही वह पूर्णत्व प्राप्त करता है।
सभी वेदों में से मैं साम वेद हूँ, सभी देवों में से मैं इंद्र हूँ,
सभी समझ और भावनाओं में से मैं मन हूँ, सभी जीवित प्राणियों में मैं चेतना हूँ।
जब जब इस धरती पर पाप, अहंकार और अधर्म बढ़ेगा,
तो उसका विनाश कर पुन: धर्म की स्थापना करने हेतु,
में अवश्य अवतार लेता रहूंगा।
मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है। जैसा वह विश्वास करता है वैसा वह बन जाता है।
इस जीवन में ना कुछ खोता है ना व्यर्थ होता है।
धरती पर जिस प्रकार मौसम में बदलाव आता है,
उसी प्रकार जीवन में भी सुख-दुख आता जाता रहता है।
आत्मा ना जन्म लेती है ना ही मरती है,
अर्थात हमें देह के मोह को त्याग कर जीवन के लक्ष्य को उच्च रखना चाहिये।
साधारण मनुष्य शरीर को व्यापक मानता है , साधक परमात्मा को व्यापक मानता है,
जैसे शरीर और संसार एक है ऐसे ही स्वयं और परमात्मा एक है।
Bhagavad Gita Quotes On Positive Thinking
तुम अपने नियत कर्तव्य कर्म करो क्योंकि अकर्म से श्रेष्ठ कर्म है,
तुम्हाम्हारे अकर्म होने से तुम्हारा शरीर निर्वाह भी नहीं सिद्ध होगा।
हम जो देखते/निहारते हैं वो हम है, और हम जो हैं हम उसी वस्तु को निहारते हैं,
इसलिए जीवन में हमेशा अच्छी और सकारात्मक चीजों को देखें और सोचें।
हे अर्जुन !
में भूतकाल, वर्तमान और भविष्यकाल के सभी जीवों को जानता हूं,
लेकिन वास्तविकता में कोई मुझे नही जानता है।
अपने अनिवार्य कार्य करो, क्योंकि वास्तव में कार्य करना निष्क्रियता से बेहतर है।
मन अशांत है और उसे नियंत्रित करना कठिन है,
लेकिन अभ्यास से इसे वश में किया जा सकता है।
अच्छे कर्म करने के बावजूद भी लोग केवल आपकी बुराइयाँ ही याद रखेंगे,
इसलिए लोग क्या कहते हैं इस पर ध्यान मत दो, तुम अपना कर्म करते रहो।
जवानी में जिसने ज़्यादा पाप किये है उन्हें बुढ़ापे में नींद नही आती।
शास्त्र वर्ण आश्रम की मर्यादा के अनुसार जो काम किया जाता है वह कार्य है,
और शास्त्र आदि की मर्यादा से विरुद्ध जो काम किया जाता है वह अकार्य है।
यज्ञ के लिये किये हुए कर्म के अतिरिक्त अन्य कर्म में प्रवृत्त हुआ,
यह पुरुष कर्मों द्वारा बंधता है इसलिए
हे कौन्तेय आसक्ति को त्यागकर यज्ञ के निमित्त ही कर्म का सम्यक आचरण करो।
यह तो स्वभाव है जो की आंदोलन का कारण बनता है।
वह व्यक्ति जो अपनी मृत्यु के समय मुझे याद करते हुए अपना शरीर त्यागता है,
वह मेरे धाम को प्राप्त होता है और इसमें कोई शंशय नही है।
सज्जन पुरुष अच्छे आचरण वाले सज्जन पुरुषो में , नीच पुरुष नीच लोगो में ही रहना चाहते है । स्वाभाव से पैदा हुई जिसकी जैसी प्रकृति है उस प्रकृति को कोई नहीं छोड़ता।
लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे,
सम्मानित व्यक्ति के लिए, अपमान मृत्यु से भी बदतर है।
लोग आपके अपमान के बारे में हमेशा बात करेंगे,
सम्मानित व्यक्ति के लिए, अपमान मृत्यु से भी बदतर है।
निद्रा , भय , चिंता , दुःख , घमंड आदि दोष तो रहेंगे ही,
दूर हो ही नहीं सकते ऐसा मानने वाले मनुष्य कायर है।
तुम अनासक्त होकर सदैव कर्तव्य कर्म का सम्यक आचरण करो ,
क्योकि अनासक्त पुरुष कर्म करता हुआ परमात्मा को प्राप्त होता।
बुद्धिमान अपनी चेतना को एकजुट करना चाहिए और फल के लिए इच्छा/लगाव छोड़ देना चाहिए।
अच्छे कर्म करने के बावजूद भी लोग केवल आपकी बुराइयाँ ही याद रखेंगे,
इसलिए लोग क्या कहते है इस पर ध्यान मत दो, तुम अपना काम करते रहो।
जो होने वाला है वो होकर ही रहता है और जो नहीं होने वाला वह कभी नहीं होता,
ऐसा निश्चय जिनकी बुद्धि में होता है उन्हें चिंता कभी नहीं सताती।
निर्माण केवल पहले से मौजूद चीजों का प्रक्षेपण है।
मन को बार बार समझाओ कि ईश्वर के बिना मेरा कोई नही है,
विचार करो कि मेरा कोई नही है और मैं किसी का नही हू।
संसार के सयोग में जो सुख प्रतीत होता है उसमे दुःख भी मिला रहता है,
परन्तु संसार के वियोग से सुख दुःख से अखंड आनंद प्राप्त होता है।
सम्पूर्ण कर्म प्रकृति के गुणों द्वारा किये जाते हैं,
अहंकार से मोहित हुआ पुरुष मैं कर्ता हूँ ऐसा मान लेता है।
इन्द्रियों की दुनिया में कल्पना सुखों की एक शुरुवात है,
और अंत भी जो दुख को जन्म देता है, हे अर्जुन।
मानव कल्याण ही भगवत गीता का प्रमुख उद्देश्य है,
इसलिए मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करते,
समय मानव कल्याण को प्राथमिकता देना चाहिए।
Bhagavad Gita Quotes On Karma
समय से पहले और भाग्य से अधिक किसी को कुछ नहीं मिलता।
उससे मत डरो जो वास्तविक नहीं है, ना कभी था ना कभी होगा.जो वास्तविक है,
वो हमेशा था और उसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता।
सभी अच्छे काम छोड़ कर बस भगवान में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाओ,
मैं तुम्हे सभी पापों से मुक्त कर दूंगा. शोक मत करो।
सत्संग ईश्वर की कृपा से मिलता है परंतु कुसंग में पड़ना तुम्हारे हाथ में है।
उत्पन्न होने वाली वस्तु तो स्वतः ही मिटती है , जो वस्तु उत्पन्न नहीं होती,
वह कभी नहीं मिटती |आत्मा अजर अमर है शरीर नाशवान है।
सम्यक् प्रकार से अनुष्ठित परधर्म की अपेक्षा गुणरहित स्वधर्म का पालन श्रेयष्कर है,
स्वधर्म में मरण कल्याणकारक है किन्तु परधर्म भय को देने वाला है।
हजारों लोगों में से, कोई एक ही पूर्ण रूप से कोशिश/प्रयास कर सकता है,
और वो जो पूर्णता पाने में सफल हो जाता है,
मुश्किल से ही उनमे से कोई एक सच्चे मन से मुझे जनता हैं।
परिवर्तन ही संसार का नियम है एक पल में हम करोड़ों के मालिक हो जाते है,
और दुसरे पल ही हमें लगता लगता है की हमारे आप कुछ भी नही है।
बुरे कर्म करने वाले, सबसे नीच व्यक्ति जो राक्षसी प्रवित्तियों से जुड़े हुए हैं,
और जिनकी बुद्धि माया ने हर ली है वो मेरी पूजा या मुझे पाने का प्रयास नहीं करते।
मैं उन्हें ज्ञान देता हूँ जो सदा मुझसे जुड़े रहते हैं और जो मुझसे प्रेम करते हैं।
तुम उसके लिए शोक करते हो जो शोक करने के योग्य नहीं हैं,
और फिर भी ज्ञान की बाते करते हो.बुद्धिमान व्यक्ति ना जीवित,
और ना ही मृत व्यक्ति के लिए शोक करते हैं।
निर्णय लेते समय ना ज़्यादा ख़ुश हो ना ज़्यादा दुखी हो,
दोनो परिस्थितियाँ आपको सही निर्णय लेने नही देती।
हे पार्थ तू फल की चिंता मत कर अपना कर्त्तव्य कर्म कर।
स्वयं अपना उद्धार करे अपना पतन न करे,
क्योंकि आप ही अपना मित्र है और आप ही अपना शत्रु है।
स्वार्थ से भरा हुआ कार्य इस दुनिया को कैद में रख देगा,
अपने जीवन से स्वार्थ को दूर रखें, बिना किसी व्यक्तिगत लाभ के।
कोई भी इंसान जन्म से नहीं बल्कि अपने कर्मो से महान बनता है।
हे अर्जुन, वह जो वास्तविकता में मेरे उत्कृष्ट जन्म और गतिविधियों को समझता है,
वह शरीर त्यागने के बाद पुनः जन्म नहीं लेता और मेरे धाम को प्राप्त होता है।
मानव कल्याण ही भगवत गीता का प्रमुख उद्देश्य है,
इसलिए मनुष्य को अपने कर्तव्यों का पालन करते समय,
मानव कल्याण को प्राथमिकता देना चाहिए।
जो कोई भी जिस किसी भी देवता की पूजा विश्वास के साथ करने की इच्छा रखता है,
मैं उसका विश्वास उसी देवता में दृढ कर देता हूँ।
वह जो इस ज्ञान में विश्वास नहीं रखते,
मुझे प्राप्त किये बिना जन्म और मृत्यु के चक्र का अनुगमन करते हैं।
स्वर्ग प्राप्त करने और वहां कई वर्षों तक वास करने के पश्चात,
एक असफल योगी का पुन: एक पवित्र और समृद्ध कुटुंब में जन्म होता है।
कभी ऐसा समय नहीं था जब मैं, तुम,या ये राजा-महाराजा अस्तित्व में नहीं थे,
ना ही भविष्य में कभी ऐसा होगा कि हमारा अस्तित्व समाप्त हो जाये।
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